Wednesday, June 24, 2020

Haryanka dynasty

                 हर्यक वंश

हर्यक वंश की स्थापना 544 ईसा पूर्व में बिम्बिसार के द्वारा की गई।

बिम्बिसार:- 15 वर्ष की आयु में शासक बना था। बिंबिसार हर्यक वंश का प्रथम शक्तिशाली शासक था। बिंबिसार ने वैवाहिक संबंधों द्वारा अपनी राजनीति को सुदृढ़ किया और समाजवादी महत्वकांक्षी को आधार बनाया। बिंबिसार ने कौशल की राजकुमारी महाकौशला और चेलना से विवाह किया। बिंदुसार ने अंग राज्य को अपने राज्य में मिला लिया। बिंदुसार गौतम बुद्ध का समकालीन था और इसलिए इसे श्रेणिक नाम दिया जाता है। 15 वर्ष की आयु में मगध साम्राज्य केशासन की बागडोर संभालने वाला बिंदुसार 52 वर्ष की आयु तक शासन करता रहा।

अजातशत्रु:-बिंबिसार के पुत्र ने उसकी कारागार में हत्या कर दी।  बिंबसार के पैरों को काटकर उनके घाव पर नमक और सिरका डाल दिया तत्पश्चात उन घावों को कोयलो से जला दिया।

बिंबसार की हत्या करने के बाद अजातशत्रु मगध का शासक बना। अजातशत्रु ने साम्राज्य विस्तार की नीति को अपनाया। लिच्छवियों के आक्रमण की वजह से अजातशत्रु ने महाशिला कंठक नामक हथियार का प्रयोग किया। प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन राजगृह में सप्तपर्णी गुफा में अजातशत्रु के शासनकाल में हुआ था ।अजातशत्रु ने पुराणों के अनुसार 20 वर्षों तक तथा बौद्ध साहित्य के अनुसार 32 वर्षों तक शासन किया।

उदायिन :- उदायिन ने 460 ई. पू में अजातशत्रु की हत्या कर दी और मगध की गद्दी पर बैठा ।उदायिन ने गंगा नदी के संगम स्थल पर कुसुमपुरा नामक नगर की स्थापना की जो बाद में पाटलिपुत्र के नाम से जाना गया।उदायिन के बाद कई हर्यक शासक मगध की गद्दी पर बैठे और अंतिम शासक नागदर्शक था जिसे दर्शक की उपाधि दी जाती है।


Tuesday, June 23, 2020

Buddhism

                          बौद्ध धर्म


बौद्ध धर्म के संस्थापक सिद्धार्थ थे जिन्हें गौतम के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म लगभग 2500 वर्ष पूर्व हुआ था। गौतम बुद्ध का जन्म लुंबिनी नेपाल में इक्ष्वाकु वंश शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ। उनकी मां का नाम महामाया था जो कोलिय वंश से थे इनके जन्म के 7 दिन बाद इनकी माता का निधन हुआ। इनका पालन महारानी की छोटी सगी बहन महाप्रजापति गौतमी ने किया।सिद्धार्थ विवाह उपरांत एकमात्र प्रथम नवजात शिशु राहुल और धर्म पत्नी यशोधरा को त्याग कर संसार को जरा मरण दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग एवं सत्य दिव्य ज्ञान की खोज में रात्रि में राज्य पाठ का मुंह त्याग कर वन की और चले गए।

 यह वह समय था जब लोगों के जीवन में तेजी से परिवर्तन हो रहे थे।बहुत से विचारक इन परिवर्तनों को समझने का प्रयास कर रहे थे वे जीवन के सच्चे अर्थ को भी जानना चाह रहे थे।

बुद्ध क्षत्रिय थे तथा शाक्य नामक एक छोटे से गन से संबंधित थे ।युवावस्था में ही ज्ञान की खोज में उन्होंने घर के सुखों को छोड़ दिया। वर्षों तक वह भ्रमण करते रहे तथा अन्य विचारको से मिलकर चर्चा करते रहे। अंततः ज्ञान प्राप्ति के लिए उन्होंने स्वयं ही रास्ता ढूंढने का निश्चय किया इसके लिए उन्होंने बोधगया( बिहार) में पीपल के नीचे कई दिनों तक तपस्या की अंततः उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ इसके बाद से वे बुद्ध के रूप में जाने गए। यहां से वाराणसी के निकट स्थित सारनाथ गए जहां उन्होंने पहली बार उपदेश दिया खुशी नारा में मृत्यु से पहले का शेष जीवन उन्होंने पैदल ही एक स्थान से दूसरे स्थान की यात्रा करने और लोगों को शिक्षा देने में व्यतीत किया। शिक्षा दी कि यह जीवन कष्टों और दुखों से भरा हुआ है और ऐसा हमारी इच्छा और लालसाओ के कारण होता है। कभी-कभी हम जो चाहते हैं वह प्राप्त कर लेने के बाद भी संतुष्ट नहीं होते हैं एवं और अधिक वस्तुओं को पाने की इच्छा करने लगते हैं। बुद्ध ने इस लिप्सा को तृष्णा कहां है। बुध ने शिक्षा दी कि आत्म संयम अपनाकर हम ऐसी लालसा से मुक्ति पा सकते हैं। उन्होंने लोगों को दयालु होने तथा मनुष्य के साथ-साथ जानवरों के जीवन का भी आदर करने की शिक्षा दी है। वे मानते थे कि हमारे कर्मों के परिणाम चाहे वह अच्छे हो या बुरे हमारे वर्तमान जीवन के साथ-साथ बाद के जीवन को भी प्रभावित करते हैं। बुद्ध ने अपनी शिक्षा सामान्य लोगों को प्राकृत भाषा में दी इसे सामान्य लोग भी उनके संदेश को समझ सके।बुद्ध ने कहा कि लोग किसी शिक्षा को केवल इसलिए नहीं स्वीकार करें कि यह उनका उपदेश है बल्कि वे उसे अपने विवेक से मापे। बहुत से वर्षों की कठोर तपस्या और साधना के बाद बौद्ध गया जो बिहार में है बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और तभी से वह सिद्धार्थ गौतम से भगवान बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुए।


किसा गौतमी की कहानी:-यह बुद्ध
के विषय में एक प्रसिद्ध कहानी है एक समय की बात है किसा गौतमी नामक एक स्त्री का पुत्र मर गया। इस बात से इतनी दुखी हुई कि वह अपने बच्चे को गोद में लिए नगर की सड़कों पर घूम घूम कर लोगों से प्रार्थना करने लगी कि कोई उसके पुत्र को जीवित कर दे एक भला व्यक्ति उसे बुुद्ध के पास ले गया। बुद्ध ने कहा" मुझे एक मुट्ठी सरसों के बीज ला कर दो मैं तुम्हारे पुत्र को जीवित कर दूंगा"। गोद में बहुत प्रसन्न हुए और जैसे ही वह बीज लाने के लिए जाने लगी तभी बुद्ध ने उसे रोका और कहा "यह बीज एक ऐसे घर से मांग कर लाओ जहां किसी की मृत्यु ना हुई हो"। किसा गौतमी एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे गई लेकिन वह जहां भी गई उसने पाया कि हर घर में किसी ना किसी के पिता, माता, भाई, पति, पत्नी, बच्चे चाचा, चाची, दादा, दादी की मृत्यु हुई थी
जिस समय बुद्ध उपदेश दे रहे थे उसी समय या उससे भी थोड़ा पहले दूसरे अन्य चिंतक भी कठिन प्रश्नों का उत्तर ढूंढने का प्रयास कर रहे थे।
 उनमें से कुछ मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में जानना चाहते थे जबकि अन्य यज्ञों की उपयोगिता के बारे में जानने को उत्सुक थे।  अधिकांश चिंतकों का यह मानना था कि इस विषय में कुछ तो ऐसा है जो कि स्थाई है और जो मृत्यु के बाद भी बचा रहता है उन्होंने इसका वर्णन आत्मा तथा ब्रह्म अथवा सार्वभौम आत्मा के रूप में किया है। वे मानते थे कि अंतत आत्मा तथा ब्रह्म एक ही है।
ऐसे कई विचारों का संकलन उपनिषदों में हुआ है ।वैदिक ग्रंथों का हिस्सा थे उपनिषद। उपनिषद का शाब्दिक अर्थ है गुरु के समीप बेठना। इन ग्रंथों में अध्यापकों और विद्यार्थियों के बीच बातचीत का संकलन किया गया है।प्रायः यह विचार सामान्य वार्तालाप के रूप में प्रस्तुत किए गए हैं।

Friday, June 19, 2020

Jainism


                जैन धर्म


  • जैन धर्म विश्व के प्राचीन धर्म में से एक है यह भारत की श्रमण परंपरा से निकला है तथा इसके प्रवर्तक हैं 24 तीर्थंकर।
  • प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव है तथा अंतिम व प्रमुख महावीर स्वामी है।

  • उत्पत्ति- जैन परंपरा ऋषभदेव से जैन धर्म की उत्पत्ति होना बताती है जो सदियों पहले हो चुके हैं इस बात के प्रमाण हैं एक शताब्दी पूर्व में ऐसे लोग थे जो कि प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की पूजा करते थे। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि जैन धर्म महावीर और पार्षद नाथ से भी पूर्व प्रचलित था।

  • अर्थ :- जैन शब्द जिन से निकला है जिसका अर्थ है जीतने वाला उनके द्वारा प्रतिपादित धर्म जैन धर्म कहलाता है जो हर प्रकार की हिंसा को वर्जित मानता है।
  • प्रथम जैन समिति का आयोजन 300 ई. में हुआ।
  • शासनकाल -यह सभा चंद्रगुप्त मौर्य के काल में हुई थी।
जैन धर्म का जन्म:- भगवान महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर है इनका जन्म करीब ढाई हजार साल पहले वैशाली के गणतंत्र राज्य क्षत्रिय कुंडलपुर में हुआ था।

जैन धर्म की प्रमुख शिक्षाएं:-

 जैन धर्म की शिक्षाएं समानता, अहिंसा, आध्यात्मिक मुक्ति और आत्म नियंत्रण के विचारों पर बल देती है। महावीर ने युगों को जो पढ़ाया है उसका आधुनिक जीवन में अभी भी महत्व है। जैन एक महत्वपूर्ण धार्मिक समुदाय है और जैन धर्म जनसंख्या को समृद्ध करने वाले पुण्य के विभिन्न सिद्धांतों पर प्रचार करता है। यह शिक्षाएं शांतिपूर्ण जीवन जीने में मदद कर सकती हैं 
इस तरह मनुष्य, जानवरों और पौधों सभी जीवित जीवो में एक शुद्ध आत्मा है जो अपने स्वयं के संबंध में स्वतंत्र है और पूर्ण है।

महावीर द्वारा प्रचारित पांच सिद्धांत

अहिंसा -किसी भी जीवित प्राणी को घायल नहीं करना।
सत्य -हमेशा सत्य बोलना।
अस्तेय - चोरी ना करना।
त्याग - संपत्ति का मालिक नहीं बनना।
ब्रम्हचर्य -सदाचारी जीवन जीने के लिए जीना।

जैन धर्म ने भी मोक्ष प्राप्त करने के तरीकों की सलाह दी है।
इसमें नौ तत्वों का उल्लेख है। इन 9 सिद्धांतों को कर्म के सिद्धांत के साथ जोड़ा गया है वह है जीव,अजीव, पुण्य ,पाप,अश्रव, बंध, संवारा, निर्जरा और मोक्ष।

जैन धर्म का प्रभाव

  • जैन धर्म की शिक्षाओं का भारतीय जनसंख्या पर धर्म, संस्कृति, भाषा और व्यंजन का व्यापक प्रभाव है।
  • जैन धर्म का वैश्विक प्रभाव भी है और आज हम संयुक्त राज्य, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा और पूर्वी अफ्रीका में जैन समुदाय की बड़ी आबादी को पाते हैं।
  • जैन धर्म में बहुत ही आधुनिक दृष्टिकोण है।यह आधुनिक दुनिया के लिए उपयुक्त है।
  • महावीर ने जाति विहीन वर्ग, कम समाज को उच्च और निम्न लिंग भेद के साथ प्रतिपादित किया है।
  • जैन धर्म हमें सच्चा और ईमानदार होना सिखाता है, चोरी, झूठ और सामान्य असुरक्षा का एक समाज बनाने में मदद करता है।
  • शांति और अहिंसा के आधार पर जैन धर्म का बहुत बड़ा योगदान है।

जैन धर्म के पतन के कारण

  • ब्राह्मण धर्म से गहरा मतभेद- जैन धर्म का ब्राह्मण धर्म से गहरा विरोध था तथा ब्राह्मणों ने भी इस धर्म का विरोध किया उनके विरोध के कारण जैन धर्म का महत्व समाप्त हो गया।
  •  सिद्धांतों की कठोरता- इस धर्म के सिद्धांत अत्यंत कठोर थे जिनका सर्वसाधारण लोग सुगमता पूर्वक पालन नहीं कर सकते थे।
  • राजकीय आश्रय का अभाव - अशोक, कनिष्क आदि जैसे अनेक महान नरेश हुए जिन्होंने बौद्ध धर्म के प्रचार में अपना जीवन लगा दिया लेकिन जैन धर्म में ऐसे महान नरेश नहीं हुए।
  •  अहिंसा-जैन धर्म के पतन का एक प्रमुख कारण उनके द्वारा प्रतिपादित अहिंसा का व्यवहारिक स्वरूप था इसका पालन जनसाधारण के लिए कठिन था।
  • कठोर तपस्या-जैन धर्म में व्रत काया-क्लेश, त्याग, अनशन, वस्त्र त्याग आदि के अनुसरण पर जोर दिया गया किंतु सामान्य गृहस्थ व्यक्ति का इस प्रकार का तपस्वी जीवन जीना संभव नहीं था।
  • संघ का संगठन जैन संघों की संगठनात्मक व्यवस्था राजतंत्रात्मक थी उसमें धर्माचार्यों और सामान सदस्यों के विचारों की तथा इच्छा की अवहेलना होती थी जिसके कारण सामान्य जनता की अभिरुचि कम हो गई।
  • भेदभाव की भावना-महावीर स्वामी ने जैन धर्म के द्वार सभी जातियों तथा धर्मों के लिए खोल रखे थे। लेकिन बाद में भेदभाव की भावना विकसित हो गई।
  • जैन धर्म में विभाजन-महावीर की मृत्यु के बाद जैन धर्म दो संप्रदायों में बंट गया था दिगंबर एवं श्रोता अंबर इन वर्गों में मतभेद के चलते इस धर्म के बचे कुचे अवशेष भी नष्ट हो गए।
  • मुसलमान शासकों का शासन-मुसलमान शासकों ने भारत पर आक्रमण किया तथा विजय हासिल कर जैन मंदिरों की नींव पर मस्जिदों और मकबरे का निर्माण किया अलाउद्दीन खिलजी ने ऐसे अनेक जैन मंदिरों को धरा शाही किया। जैन पुस्तकालय नष्ट कर दिए गए थे इन सभी कारणों के चलते जैन धर्म का विनाश हो गया।
  • ब्राह्मण धर्म में सुधार- ईशा की प्रारंभिक शताब्दी में वैदिक पौराणिक ब्राह्मण धर्म अपनी कट्टरपंथी विकृतियों को दूर कर अपने धर्म में सुधार करने में लग गया इस वजह से लोगों की रूचि शेव तथा वैष्णव धर्म की ओर बढ़ी।

Wednesday, June 17, 2020

Vedic period

  वैदिक काल (1900 BC - 600 BC )

  • दोस्तों वैदिक काल में दुनिया के सबसे प्राचीन ग्रंथ लिखे गए हैं जिनका आज भी अध्ययन किया जाता है।
  • वेद संस्कृत में लिखे गए हैं जो विश्व की सबसे पुरानी भाषा है।
  • इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता कि वेदों की रचना किसने की इसलिए ऐसा माना जाता है कि वेदों की रचना देवों ने की थी जिसका संकलन वेदव्यास द्वारा किया गया है।
  • वैदिक काल में आर्य लोगों का वर्चस्व था लगभग 2000 ईसा पूर्व में यह आर्य लोग मध्य एशिया से सिंधु नदी की और बढ़े और यहीं आकर बस गए।
  • आर्य स्वभाव से लड़ाकू हुआ करते थे और खानाबदोश जीवन जीते थे।
  • माना जाता है कि आर्यों के आने से ही सिंधु घाटी सभ्यता का अंत हुआ था।
वैदिक काल को दो भागों में बांटा जाता है
1 पूर्व वैदिक काल (1900 BC -1000 BC 
2 ‌उत्तर वैदिक काल (1000 BC- 600 BC )
वैदिक काल में तीन साहित्यो की रचना हुई।
  • वेद
  • ब्राह्मण
  • उपनिषद्
वेदों को मुख्यतः चार भागों में बांटा जाता है
1 ऋग्वेद
2 सामवेद
3 यजुर्वेद
4अथर्ववेद 
ऋग्वेद -यह सबसे पहला और प्राचीन वेद है। ऋग्वेद को साहित्य में 1028 मंत्र और 10 मंडलों में विभक्त किया गया है।
  • इंद्र को ऋग्वेद का पुरांगर कहा जाता है इंद्र ही ऋग्वेद के सबसे प्रमुख देवता है।
  • इसमें भगवानों देवताओं को प्रसन्न करने का वर्णन है।
सामवेद
  • सामवेद का सार ऋग्वेद से लिया गया है।
  • संगीत की उत्पत्ति सामवेद से मानी जाती है।
  • यज्ञ और प्रार्थना के समय किए जाने वाले गायन का वर्णन सामवेद में ही है।
यजुर्वेद
  • यजुर्वेद में धार्मिक संस्कारों और नियमावली का विवरण है।
  • आयुर्वेद में ब‌ली प्रथा का भी विवरण है।
  • यज्ञों के समय पालन किए जाने वाले नियमों का भी विवरण यजुर्वेद में था।
  • अश्वमेध यज्ञ और राजस्वी यज्ञ का विवरण भी यजुर्वेद में है।

अथर्व वेद
  • अथर्ववेद में शैतान वह बीमारी को दूर करने वाले मंत्रों का वर्णन है।
  • इसमें जनसामान्य में पृथक विश्वासों मान्यताओं अंधविश्वासों का भी वर्णन है।
  • यह अंतिम वेद है जिसमें दुर्लभ औषधि जैसे मृत संजीवनी बूटी का भी वर्णन है।

ब्राह्मण
  • ब्राह्मण का श्लोकों के रूप में वेदों का गद्दात्मक रूप में वर्णन किया जाता है।
  • अरण्य ग्रंथ :- शब्द का अर्थ है वन या जंगल इसमें दार्शनिक सिद्धांतों और रहस्यवाद का वर्णन है।
उपनिषद
  • उपनिषद शब्द उपनिषद धातु से बना है जिसका अर्थ है किसी के पास बैठना।
  • इसमें आत्मा परमात्मा विश्व की उत्पत्ति से संबंधित प्रकृति के रहस्य तथा अन्य ग्रंथ है।

                            पूर्व वैदिक काल
  • इस काल की जानकारी ऋग्वेद से प्राप्त होती है इसलिए इसे ऋग्वैदिक काल भी कहते हैं।
  • आर्य लोग जो मध्य एशिया से आए थे सिंध नदी के पास निवास करते थे।
  • ऋग्वेद में सप्तसिंधु नाम से 7 नदियों का वर्णन है झेलम,
  •  चिनाब, व्यास, रवि, सतलुज, सिंधु, सरस्वती।
  • इस काल में आर्य लोगों का क्षेत्र पूर्व में गंगा नदी से लेकर पश्चिम में कुंभा नदी तक था।
  • ऋग्वेद में सबसे अधिक सिंधु नदी का वर्णन है।
  • इस काल में राजा प्रथा लोकप्रिय था इसका प्रमुख साक्ष्य 10 राजाओं का युद्ध है।
  • यह युद्ध रावी नदी के तट पर हुआ था जिसमें भरत राजा सुदास की जीत हुई थी।
राजनैतिक व्यवस्था
  • आर्यों के पांच कबीले थे जिन्हें पंच जन कहा जाता था।
  • सबसे छोटी इकाई परिवार की थी जिसे कुल कहा जाता था यह मौलिक इकाई थी।
  • परिवार के मुखिया को कुलप या ग्रह पति कहते थे।
  • परिवार या कुल मिलाकर विश्व बनाते थे विश्व मिलकर जन या कबीला बनाते थे। सबसे ऊपर राष्ट्र था।
  • राजा को सम्राट या राजन के नाम से पुकारते थे।
  • रिग वैदिक काल में राजा बनने की प्रथा वंशानुगत और लोकतांत्रिक दोनों थी।
  • इस समय जनता की सभा कराई जाती थी जिससे समीगी कहते थे।
  • इस सभा के सदस्य जनता द्वारा चुने जाते थे।
  • समिति के सभापति को ईशान कहा जाता था।
  • राजा मंत्री परिषद की स्थापना करता था और राजा का सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी पुरोहित होता था।
  • इस समय दूत और गुप्तचर हुआ करते थे।
सामाजिक और आर्थिक जीवन
  • आर्य समाज पुरुष प्रधान था लेकिन महिला को यहां सामान दर्जा दिया जाता था।
  • आर्य समाज में परिवार की प्रथा थी तथा पुत्र ही पैतृक संपत्ति का अधिकारी होता था।
  • यहां एकल पत्नी विवाह प्रचलित था ।
  • वर्ण व्यवस्था जाती के आधार पर ना होकर कर्म के आधार पर थी। मतलब जरूरी नहीं की कुम्हार का बेटा राजा नहीं बन सकता वो अपने कर्म के आधार पर जो चाहे बन सकता था। 
ब्राह्मण - वे जो पंडित थे।
क्षत्रिय - सैनिक एवं राजा ।
वैश्या - व्यापारिक वर्ग।
शूद्र - कारीगर व मजदूर।
  • ऋग्वैदिक काल में गाय को सबसे पवित्र जानवर माना गया था।
  • यहां पर शिक्षा हेतु गुरुकुल भी थे।
 धार्मिक एवं वैदिक जीवन
  • इस काल में देवताओं को प्राकृतिक शक्तियों के रूप में पूजा जाता था।
  • वायु देव, अग्नि देव, वरुण देव व इंद्र देव प्रमुख देवता थे।
  • सबसे प्रमुख देवेंद्र थे जो बादलों के देवता थे।
  • सबसे प्रसिद्ध अग्निदेव थे।
  • इस काल में उषा और आदिती दो देवियां थी।
  • इस समय मंदिर नहीं होते थे और मूर्ति पूजा नहीं होती थी।
  • इस काल में यज्ञ का प्रचलन था गायत्री मंत्र ऋग्वेद से ही लिया गया है।
  • ऋग्वेद में आर्यों के मध्य एशिया से आने का कोई वर्णन नहीं है परंतु कई भारतीय इतिहासकार मानते हैं कि आर्य भारत के ही मूल निवासी थे क्योंकि हड़प्पा और वैदिक सभ्यता में कई समानताएं थी।
                                 उत्तर वैदिक काल


  • इस काल में ब्राह्मण अरण्यक उपनिषद् की रचना की गई।
  • निषाद अंतिम ग्रंथ है जिसे वेदांत भी कहते हैं जिसका अर्थ है वेदों का अंत।
  • उपनिषदों की भाषा वैदिक संस्कृत नहीं बल्कि साहित्यिक संस्कृत है इसके अनुसार ब्रह्म और आत्मा एक ही है।
  • जीवन का लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना है।
  • पुनर्जन्म का विचार सबसे पहले बृहदारण्यक उपनिषद में आया है।*
  • उत्तर वैदिक काल की सभ्यता पूरे उत्तर भारत में फैली थी।
  • इस काल में गंगा को सभ्यता का केंद्र और सबसे प्रमुख नहीं माना जाता था।
  • उत्तर वैदिक काल में राज्यों को जन कहा जाता था।
  • इस काल में काशी कोसला और विदेश जन विकसित हुए जो वर्तमान उत्तर प्रदेश और बिहार है।
  • इसी समय अंग और मगध की शुरुआत हुई जो सर्वाधिक शक्तिशाली राज्य बने।
राजनीति और प्रशासन
  • इस काल में राजाओं की शक्तियां बड़ी और देवताओं का दर्जा उन्हें दिया गया।
  • राजा के अभिषेक और राज्य तिलक के समय अश्वमेघ यज्ञ कराए जाते थे।
  • इस समय लोकतांत्रिक व्यवस्था से राजा को चुना जाता था।
  • राजा को सलाह देने के लिए एक मंत्री परिषद होता था।
  • कानून बनाने के लिए सभा होती थी और सभा न्याय देने का कार्य भी करती थी न्याय को धर्म भी कहा जाता था।
  • कुछ अपराधों के लिए मृत्युदंड भी दिया जाता था जैसे गाय की हत्या शराब का सेवन आदि।
  • इस काल में वर्ण वर्ण व्यवस्था जन्म के आधार पर होती थी।
  • शूद्रों का अधिशोषण शुरू हुआ और इसी काल में अस्पृश्यता की शुरुआत हुई।
आर्थिक जीवन
  • फसलों की कटाई और आर्थिक लाभ के लिए उत्सव और धार्मिक क्रियाओं की शुरुआत हुई।
  • धान की खेती शुरू हुई।
  • माप तोल की शुरुआत हुई।
  • फसलों को मौसम के अनुसार उगाया जाने लगा।
  • इस काल में निषाद और सतवन मुद्रा का प्रयोग हुआ।
  • लोगों से टैक्स लिया जाता था जिसे वही कहा जाता था।
विज्ञान एवं तकनीकी
  • इस समय के प्रमुख विषय गणित अंकगणित लेखा गणित बीज गणित ज्योतिष विज्ञान और अंतरिक्ष विज्ञान आदि थे।
  • वैदिक काल में फास्ट मैथमेटिक्स की भी खोज हुई थी।
  • वैदिक काल में कैलेंडर बनाए गए जिसे पंचांग कहते हैं।
  • इसी काल में चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण का  पता लगाया गया।
  • वैदिक काल के लोगों ने धरती के सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने का भी पता लगा लिया था।
  • चंद्रमा के पृथ्वी का चक्कर लगाने का पता भी वैदिक काल के लोगों ने कर लिया था।
  • इस साल में सौर मंडल की भी खोज की जा चुकी थी।




Sunday, June 14, 2020

Indus valley civilisation

Indus valley civilisation (  हिन्दू घाटी सभ्यता )


यह विश्व की प्राचीन  सभ्यताओं में से एक है।  इस सभ्यता को हड़प्पा  भी कहा जाता है क्योंकि सबसे पहले हड़प्पा की खोज हुई।
 एलेग्जेंडर कनिंगभ को भारतीय पुरातत्व का जनक  कहा जाता है।  ये भारतीय पुरातात्विक सर्वेश्रण के पहले डायरेक्टर जनरल थे। 
सर जॉन मार्शल ने इस सभ्यता  को सिंधु घाटी सभ्यता  का  नाम दिया। 
1826 में चार्ल्स भेसन ने हड़प्पा टीले की पहली जानकारी दी। 
विस्तार - सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार त्रिभुजाकार है जो 12 लाख 99 हजार 600  वर्ग किलोमीटर है। हड़प्पा सभ्यता को ऋग्वेद में  हरिओपिआ  कहा जाता है। विस्तार के आधार पर  स्टुवर्ट पीटर ने हड़प्पा व मोहनजोदड़ो को जुडवा राजधानी बताया था। 
प्रमुख स्थल - हड़प्पा , लोथल,मोहनजोदड़ो ,कालीबंगा, चन्हूदड़ो व बनवाली सिंधु सभ्यता के  प्रमुख स्थल माने जाते है। 
सिंधु सभ्यता के चार बड़े नगर -मोहनजोदड़ो , हड़प्पा , गनेडीवाल ( पाकिस्तान ) तथा ढोलवीरा। 


                                                               हड़प्पा 


वर्त्तमान  स्थान -मोंटगोमरी पंजाब (पाकिस्तान )
नदी -रवि नदी 
 खोजकर्ता -दयाराम साहनी 1921 
प्राप्त  सामग्री -R-37 कब्रिस्तान ,अन्नागार ,उर्वरता की देवी ,मछुआरों का चित्र ,साँप को मुँह में दबाये हुए गरूर, 
शंख  का बना हुआ महल ,कांसे की  गाड़ी। 
  • अभिलेख युक्त मुहरे सर्वाधिक हड़प्पा से मिले है। 
  • हड़प्पा पुरातत्व स्थल की ईटे लाहौर तथा मुल्तान के बीच रेल पटरी  के  निर्माण में इस्तेमाल की गयी है। 
                                                               मोहनजोदड़ो 
 वर्त्तमान स्थान -लरकाना (पाकिस्तान )
नदी -सिंधु नदी
खोजकर्ता -राखलदास बनर्जी 1922
प्राप्त सामग्री -विशाल स्नानागार ,विशाल अन्नागार (सबसे लम्बी ईमारत ),महाविद्यलाय भवन ,कूबड़ वाला बैल, तीन सींग वाला योगी, कांस्य की नृत्यरत नारी की मूर्ति, पशुपति शिव की मुद्रा (गेंडा,भैस,हाथी,हिरण ),सीप का पैमाना,पूजारी का सिर ,सर्वाधिक मुहर।

  • यह एकमात्र ऐसा स्थान था जहा स्तूप मिला था। 
  • मोहनजोदड़ो का शाब्दिक अर्थ 'मृतकों का टीला ' होता है। 
  • मोहनजोदड़ो को सिंध का बाग़ तथा सिंध का नखलिस्तान भी कहा जाता है। 
                                                             लोथल 

वर्त्तमान स्थान -अहमदाबाद (गुजरात )
नदी -भोगता नदी
खोजकर्ता - S R राव 1955 -63
प्राप्त सामग्री -डॉकयार्ड /जहाजों की गोढ़ी /बंदरगाह ,युगल समाधी ,चालाक लोमड़ी का चित्र ,चावल व बाजरे के साक्ष्य, मनके बनाने का कारखाना,मेसोपोटामिया व फारस की मुद्रा ,बतख के सर्वाधिक चित्र ,आटा पीसने की चक्की,अग्निकुंड, हाथीदांत का पैमाना।

  • यहाँ सबसे अच्छा जल निकासी का उदहारण मिलता है। 
  • लोथल को  मृतकों का टीला भी कहते है। 
  • लोथल को व्यापारिक गतिविधियों की राजधानी 'लघु हड़प्पा 'या 'लघु मोहनजोदड़ो 'के उपनामो से भी जाना जाता है। 
                                                             कालीबंगा 
वर्त्तमान स्थान -हनुमानगढ़। कालीबंगा राजस्थान के हनुमान गढ़ जिले में घग्घर नदी के बाएं तट पर स्थित है यह प्राचीन समय में चूड़ियों के लिए प्रसिद्द था।
नदी-घग्घर।
खोजकर्ता -अमलानंद घोष।
प्राप्त सामग्री -जुते हुए खेत के साक्ष्य ,लकड़ी की नालियां ,हवन कुंड ,अग्निकुंड ,हल के साक्ष्य ,समाधी, युगल खेती, अलंकृत ईंट।

  • कालीबंगा का शाब्दिक अर्थ 'काली चूरियां' होता है। 
  • इसे सिंधु घाटी सभ्यता की तीसरी राजधानी कहा जाता है। 
  • सिंधुघाटी सभ्यता का यह एकमात्र स्थल है जहा जल निकासी का अभाव व मातृदेवी  मूर्ती का आभाव पाया गया है। 
  • इस सभ्यता के स्थल में तीन सांस्कृतिक चरणों के साक्ष्य प्राप्त हुए है। 
  • यह इस सभ्यता की गरीब बस्तियों में से एक है। 
                                                         धौलावीरा 
वर्त्तमान स्थल -कच्छ (गुजरात)
नदी -मानसर नदी।
उल्खनन कर्ता -R.S visht
प्राप्त सामग्री -सबसे बड़ा स्टेडियम,नगर के तीन विभाजन दुर्ग क्षेत्र ,मध्यम नगर ,नीचला नगर।

  • यह भारत में स्थित सबसे बड़ा स्थल है। 
                                                          चन्हूदड़ो 
वर्तमान स्थल -सिंध (पाकिस्तान)
नदी -सिंधु।
खोजकर्ता -मजूमदार व मेके।
प्राप्त सामग्री -अलंकृत हाथी ,मनके बनाने का कारखाना , कुत्ता व बिल्ली के पैरो के निशान,वक्राकार ईंटे।

  • यह एकमात्र स्थल है जहा वक्राकार ईंटे मिली है। 
  • यहां से किसी भी दुर्ग के अवशेष नहीं मिले है। 
                                                           वनवाली      
वर्त्तमान स्थान -हिसार।
नदी -सरस्वती नदी।
उल्खनन कर्ता -R.S visht
प्राप्त सामग्री -खिलोने के रूप में हल कीआकृति ,कालीबंगा व हड़प्पा कालीन संस्कृति के अवशेष, अग्निवेदिका के अवशेष,जलनिकासी प्रणाली का अभाव, तिल,सरसो व जौ के अवशेष, वर्तमान बैलगाड़ी के आकार के समान निशान।                      
                                                         सुरकोटड़ा 
 वर्त्तमान स्थान- कच्छ (गुजरात )
 खोजकर्ता -जगपति जोशी 1964
प्राप्त सामग्री - घोड़े की अस्थियां इत्यादि।
                                                         रंगपुर 
वर्त्तमान स्थान -अहमदाबाद
नदी -मादर नदी
उल्खनन कर्ता- M S Vats व S R Rao
प्राप्त सामग्री -धान की भूसी ,कालीबंगा  समान कच्ची ईंट के दुर्ग।   


                                          सिंधु घाटी सभ्यता के अन्य स्थल 

  • सतलुज नदी के किनारे स्थित रोपड़ से ताम्बे की कुल्हाड़ी प्राप्त हुई है। 
  • रोपड़ ,बुर्जहोम के आलावा यह  एकमात्र स्थल है  जहाँ मानव के साथ कुत्ते को  दफ़नाने के साक्ष्य मिले है।
  • चिनाव नदी के किनारे हड़प्पा सभ्यता के त्रिस्तरीय संस्कृति  क्रम मिले है। 
  • अमरि एकमात्र स्थल है जहा से  गंडे के साक्ष्य मिले है। 
  • सिंध, पाकिस्तान व यूनान से व्यापर के साक्ष्य मिले है। 
  • हरियाणा (भगवानपुरा ) से पक्की ईंटो के मकान मिले है 
                                         सिंधु सभ्यता के कुछ विशेष तथ्य 

  • शासन-व्यवस्था -जनतंत्रात्मक,गणतंत्रात्मक 
  • यहाँ मातृसत्तातमक परिवार थे। लोग शकाहारी व मांसाहारी दोनों थे। 
  • ये लोग घोड़े व लोहे से अपरिचित थे लेकिन  गुजरात के लोग हाथी  पालते थे। 
  • सिंधु सभ्यता से गाय के कोई चित्रण नहीं मिले है। 
  • भारत की प्राचीन मुद्रा सिंधु सभ्यता की सेलखड़ी की मानी जाती है। 
  • मेहरगढ़ से स्थायी जीवन के कुछ प्रमाण मिले है। 
  • सिंधु सभ्यता की लिपि बाये से दांये व दाएं से बाएं लिखी जाती हैजिसे ज़िगज़ैग कहा जाता है। 
  • इस लिपि में 64 शब्द व लगभग 400 अक्षर सामने आएं है। 
  • यहाँ सर्वाधिक प्रचलित चिन्ह मछली के आकर का था। 
  •   मनके बनाने के कारखाने चन्हूदड़ो के अलावा लोथल में भी मिले है। 
  • कालीबंगा से हल के साक्ष्य व वनवाली से हल की आकृति के खिलोने मिले है। 
  • मोहनजोदड़ो से अवतल चक्कियाँ बड़ी संख्या में मिले है तथा यहाँ से जड़ीबूटियां व मसालो को कूटने के पत्थर मिले है जिन्हे सालन  पत्थर कहा जाता है। 
  • नागेश्वर व बालकेट से शंख की बनी हुई वस्तुए प्राप्त हुई है। 
                                            सिंधु घाटी सभ्यता का पतन  
सिंधु घाटी सभ्यता का  पतन होने के अनेको कारन माने जाते है ,विभिन्न विद्वानों के अनुसार इस सभ्यता के पतन के अलग-अलग कारण है। 
  • M R Sahani के अनुसार भौतिक परिवर्तन ही पतन का कारण है। 
  • John Marshal एवं S R Rao  का कहना है बाढ़ है पतन का कारण। 
  • U K R canedi का मानना है प्राकर्तिक आपदा है। 
  • Aarel Stain ,A N Ghosh  के अनुसार जलवायु परिवर्तन। 

Tuesday, June 9, 2020

ANCIENT HISTORY

PRE-HISTORY ( प्रागैतिहासिक काल )
        
यह वह काल है जिसका कोई लिखित वर्णन नहीं मिलता तथा मानव को पढ़ना लिखना भी नहीं आता था। इस काल को आदि-मानव काल और पाषाण काल भी कहा जाता है। 
इस काल को तीन भागो  विभाजित किया जा सकता है। 
1 पाषाण युग (Stone age)
2 कांस्य  युग (Bronze age)
3 लौह युग (Iron age ) 
1 पाषाण युग -  इस काल में मानव का जीवन पत्थरो पर अत्यधियक निर्भर  था। उदाहरण -पत्थरों से शिकार करना , पत्थरो की गुफाओं में रहना , पत्थरो से  पैदा करना। 

पाषाण युग को पुनः तीन भागो में विभाजित  किया जाता है। 
अ) पुरापाषाण काल (paleolithic era)25 -20 लाख साल से 12000 साल पूर्व तक। 
  औजार - हाथ से बने अथवा प्राकृतिक वस्तुओ का हथियार / औजार के रूप में उपयोग भाला ,कुल्हाड़ी ,धनुष , तीर , सुई। 
   जीविका का आधार -शिकार एवं खाद्य संग्रह। 
   जीवन यापन -  अस्थायी जीवन शैली  जैसे  गुफा ,अस्थायी झोपड़ी मुख्यतः नदी एवं झील के किनारे। इन लोगो की कोई एक जगह /स्थान निश्चित नहीं होता था।  ये रहने के लिए स्थान बदलते रहते थे। 
अविष्कार -आग का अविष्कार इसी काल  हुआ। 
समाज -24 -1000 लोगो का समूह हुआ करता था। ज्यादातर  ये एक ही परिवार के सदस्य हुआ करते थे। 
ब)  मध्यपाषाण काल (Mesolithic era) 12000 साल से लेकर 10,000 साल पूर्व तक। इस युग को लघुपाषाण युग भी कहा जाता है। चित्र बनाने की कला मानव ने इसी काल में सीखी। 
     औजार -हाथ से बने अथवा प्राकृतिक वस्तुओं का हथियार / औजार के रूप में उपयोग होता था जैसे धनुष ,तीर ,मछली के शिकार एवं भण्डारण के औजार। 
      रहने का स्थान -निश्चित स्थान नहीं था। इनकी जीवन शैली अश्थायी थी जैसे कभी गुफा तो कभी अश्थायी झोपड़ियां आदि।
      समाज -इस काल में कबीलो और परिवार के समूहों का उदय हो गया था।
स) नवपाषाण काल (Neolithic era)- 10,000 से 3,300  ई.पू तक। इसी काल में मानव कृषि करना सीख गया था।

     औजार - हाथ से बने अथवा प्राकृतिक वस्तुओ का हथियार /औजार  में उपयोग -चिसल (लकड़ी छिलने  के लिए ),खेती में प्रयोग होने वाले औजार ,मिटटी के बर्तन आदि।
     जीविका का आधार - खेती ,शिकार एवं खाद्य संग्रह ,मछली का शिकार और पशुपालन।
     शरण स्थल - खेतो के आस पास मिटटी के घर अथवा छोटी बस्तियां बनाकर रहते थे।
     अविष्कार -पहिये का अविष्कार  नवपाषाण काल में ही हुआ था।
     समाज -कबीले के रूप में डेवेलप हो चुका था।

  • मनुष्य ने सर्वप्रथम कुत्ते को अपना पालतू पशु बनाया था तब उसमे स्थायी रूप से बसने की प्रवृत्ति जगी और उसने कृषि व्यवस्था को अपनाना शुरू किया। 
  • गेहूँ मनुष्य द्वारा उपजायी गयी पहली फसल थी फिर जौ का उत्पादन हुआ। 
  • इसी काल में मानव ने कपड़े बनाने की कला सीखी थी। 
  • चाक का अविष्कार भी इसी काल में किया गया था। 
2 कांस्य युग 
  •  इस युग  मनुष्य ने कांस्य (ताँबे  तथा टीन से बना एक मिश्रित धातु ) का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था। 
  • इस युग की  विशेषता यह है की इसी युग में मनुष्य शहरी सभ्यताओं में बसने लगा और  वजह से विश्व की कई जगहों में पौराणिक सभ्यताओं का विकास हुआ। 
  • इसी युग में विभिन्न सभ्यताओं में अलग अलग लिपियों का विकास हुआ जिनकी मदद से आज  पुरातत्व शास्त्रियों को उस युग के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य  हासिल होते है। 
औजार - ताँबे  एवं कांस्य के औजार ,मिट्टी  के बर्तन  का  उपयोग होता था। 
अर्थव्यवस्था -खेती ,पशुपालन ,हस्तकला  एवं व्यापार। 

3 लोह युग 
  • इस युग में मानव ने लोहे  इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था। 
  • इस युग की विशेषता यह है की मानव ने बहुत सी भाषाओ की वर्णमाला का विकास किया जिसकी मदद से उस काल में साहित्य और इतिहास लिखे जा सके। 
  • ऋग्वेद और कई सारी गाथाये भी इसी काल  में लिखी गयी थी।  कृषि और धार्मिक विश्वाशों में भी इसी युग में भारी परिवर्तन हुआ। 
औजार -लोहे के औजारों का उपयोग होता था। 
अर्थव्यवस्था -खेती ,पशुपालन,हस्तकला एवं व्यापार। 


Haryanka dynasty

                 हर्यक वंश हर्यक वंश की स्थापना 544 ईसा पूर्व में बिम्बिसार के द्वारा की गई। बिम्बिसार:- 15 वर्ष की आयु में शासक बना था। बिं...