जैन धर्म
- जैन धर्म विश्व के प्राचीन धर्म में से एक है यह भारत की श्रमण परंपरा से निकला है तथा इसके प्रवर्तक हैं 24 तीर्थंकर।
- प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव है तथा अंतिम व प्रमुख महावीर स्वामी है।
- उत्पत्ति- जैन परंपरा ऋषभदेव से जैन धर्म की उत्पत्ति होना बताती है जो सदियों पहले हो चुके हैं इस बात के प्रमाण हैं एक शताब्दी पूर्व में ऐसे लोग थे जो कि प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की पूजा करते थे। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि जैन धर्म महावीर और पार्षद नाथ से भी पूर्व प्रचलित था।
- अर्थ :- जैन शब्द जिन से निकला है जिसका अर्थ है जीतने वाला उनके द्वारा प्रतिपादित धर्म जैन धर्म कहलाता है जो हर प्रकार की हिंसा को वर्जित मानता है।
- प्रथम जैन समिति का आयोजन 300 ई. में हुआ।
- शासनकाल -यह सभा चंद्रगुप्त मौर्य के काल में हुई थी।
जैन धर्म की प्रमुख शिक्षाएं:-
जैन धर्म की शिक्षाएं समानता, अहिंसा, आध्यात्मिक मुक्ति और आत्म नियंत्रण के विचारों पर बल देती है। महावीर ने युगों को जो पढ़ाया है उसका आधुनिक जीवन में अभी भी महत्व है। जैन एक महत्वपूर्ण धार्मिक समुदाय है और जैन धर्म जनसंख्या को समृद्ध करने वाले पुण्य के विभिन्न सिद्धांतों पर प्रचार करता है। यह शिक्षाएं शांतिपूर्ण जीवन जीने में मदद कर सकती हैं
इस तरह मनुष्य, जानवरों और पौधों सभी जीवित जीवो में एक शुद्ध आत्मा है जो अपने स्वयं के संबंध में स्वतंत्र है और पूर्ण है।
महावीर द्वारा प्रचारित पांच सिद्धांत
अहिंसा -किसी भी जीवित प्राणी को घायल नहीं करना।सत्य -हमेशा सत्य बोलना।
अस्तेय - चोरी ना करना।
त्याग - संपत्ति का मालिक नहीं बनना।
ब्रम्हचर्य -सदाचारी जीवन जीने के लिए जीना।
जैन धर्म ने भी मोक्ष प्राप्त करने के तरीकों की सलाह दी है।
इसमें नौ तत्वों का उल्लेख है। इन 9 सिद्धांतों को कर्म के सिद्धांत के साथ जोड़ा गया है वह है जीव,अजीव, पुण्य ,पाप,अश्रव, बंध, संवारा, निर्जरा और मोक्ष।
अस्तेय - चोरी ना करना।
त्याग - संपत्ति का मालिक नहीं बनना।
ब्रम्हचर्य -सदाचारी जीवन जीने के लिए जीना।
जैन धर्म ने भी मोक्ष प्राप्त करने के तरीकों की सलाह दी है।
इसमें नौ तत्वों का उल्लेख है। इन 9 सिद्धांतों को कर्म के सिद्धांत के साथ जोड़ा गया है वह है जीव,अजीव, पुण्य ,पाप,अश्रव, बंध, संवारा, निर्जरा और मोक्ष।
जैन धर्म का प्रभाव
- जैन धर्म की शिक्षाओं का भारतीय जनसंख्या पर धर्म, संस्कृति, भाषा और व्यंजन का व्यापक प्रभाव है।
- जैन धर्म का वैश्विक प्रभाव भी है और आज हम संयुक्त राज्य, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा और पूर्वी अफ्रीका में जैन समुदाय की बड़ी आबादी को पाते हैं।
- जैन धर्म में बहुत ही आधुनिक दृष्टिकोण है।यह आधुनिक दुनिया के लिए उपयुक्त है।
- महावीर ने जाति विहीन वर्ग, कम समाज को उच्च और निम्न लिंग भेद के साथ प्रतिपादित किया है।
- जैन धर्म हमें सच्चा और ईमानदार होना सिखाता है, चोरी, झूठ और सामान्य असुरक्षा का एक समाज बनाने में मदद करता है।
- शांति और अहिंसा के आधार पर जैन धर्म का बहुत बड़ा योगदान है।
जैन धर्म के पतन के कारण
- ब्राह्मण धर्म से गहरा मतभेद- जैन धर्म का ब्राह्मण धर्म से गहरा विरोध था तथा ब्राह्मणों ने भी इस धर्म का विरोध किया उनके विरोध के कारण जैन धर्म का महत्व समाप्त हो गया।
- सिद्धांतों की कठोरता- इस धर्म के सिद्धांत अत्यंत कठोर थे जिनका सर्वसाधारण लोग सुगमता पूर्वक पालन नहीं कर सकते थे।
- राजकीय आश्रय का अभाव - अशोक, कनिष्क आदि जैसे अनेक महान नरेश हुए जिन्होंने बौद्ध धर्म के प्रचार में अपना जीवन लगा दिया लेकिन जैन धर्म में ऐसे महान नरेश नहीं हुए।
- अहिंसा-जैन धर्म के पतन का एक प्रमुख कारण उनके द्वारा प्रतिपादित अहिंसा का व्यवहारिक स्वरूप था इसका पालन जनसाधारण के लिए कठिन था।
- कठोर तपस्या-जैन धर्म में व्रत काया-क्लेश, त्याग, अनशन, वस्त्र त्याग आदि के अनुसरण पर जोर दिया गया किंतु सामान्य गृहस्थ व्यक्ति का इस प्रकार का तपस्वी जीवन जीना संभव नहीं था।
- संघ का संगठन जैन संघों की संगठनात्मक व्यवस्था राजतंत्रात्मक थी उसमें धर्माचार्यों और सामान सदस्यों के विचारों की तथा इच्छा की अवहेलना होती थी जिसके कारण सामान्य जनता की अभिरुचि कम हो गई।
- भेदभाव की भावना-महावीर स्वामी ने जैन धर्म के द्वार सभी जातियों तथा धर्मों के लिए खोल रखे थे। लेकिन बाद में भेदभाव की भावना विकसित हो गई।
- जैन धर्म में विभाजन-महावीर की मृत्यु के बाद जैन धर्म दो संप्रदायों में बंट गया था दिगंबर एवं श्रोता अंबर इन वर्गों में मतभेद के चलते इस धर्म के बचे कुचे अवशेष भी नष्ट हो गए।
- मुसलमान शासकों का शासन-मुसलमान शासकों ने भारत पर आक्रमण किया तथा विजय हासिल कर जैन मंदिरों की नींव पर मस्जिदों और मकबरे का निर्माण किया अलाउद्दीन खिलजी ने ऐसे अनेक जैन मंदिरों को धरा शाही किया। जैन पुस्तकालय नष्ट कर दिए गए थे इन सभी कारणों के चलते जैन धर्म का विनाश हो गया।
- ब्राह्मण धर्म में सुधार- ईशा की प्रारंभिक शताब्दी में वैदिक पौराणिक ब्राह्मण धर्म अपनी कट्टरपंथी विकृतियों को दूर कर अपने धर्म में सुधार करने में लग गया इस वजह से लोगों की रूचि शेव तथा वैष्णव धर्म की ओर बढ़ी।
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