बौद्ध धर्म
यह वह समय था जब लोगों के जीवन में तेजी से परिवर्तन हो रहे थे।बहुत से विचारक इन परिवर्तनों को समझने का प्रयास कर रहे थे वे जीवन के सच्चे अर्थ को भी जानना चाह रहे थे।
बुद्ध क्षत्रिय थे तथा शाक्य नामक एक छोटे से गन से संबंधित थे ।युवावस्था में ही ज्ञान की खोज में उन्होंने घर के सुखों को छोड़ दिया। वर्षों तक वह भ्रमण करते रहे तथा अन्य विचारको से मिलकर चर्चा करते रहे। अंततः ज्ञान प्राप्ति के लिए उन्होंने स्वयं ही रास्ता ढूंढने का निश्चय किया इसके लिए उन्होंने बोधगया( बिहार) में पीपल के नीचे कई दिनों तक तपस्या की अंततः उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ इसके बाद से वे बुद्ध के रूप में जाने गए। यहां से वाराणसी के निकट स्थित सारनाथ गए जहां उन्होंने पहली बार उपदेश दिया खुशी नारा में मृत्यु से पहले का शेष जीवन उन्होंने पैदल ही एक स्थान से दूसरे स्थान की यात्रा करने और लोगों को शिक्षा देने में व्यतीत किया। शिक्षा दी कि यह जीवन कष्टों और दुखों से भरा हुआ है और ऐसा हमारी इच्छा और लालसाओ के कारण होता है। कभी-कभी हम जो चाहते हैं वह प्राप्त कर लेने के बाद भी संतुष्ट नहीं होते हैं एवं और अधिक वस्तुओं को पाने की इच्छा करने लगते हैं। बुद्ध ने इस लिप्सा को तृष्णा कहां है। बुध ने शिक्षा दी कि आत्म संयम अपनाकर हम ऐसी लालसा से मुक्ति पा सकते हैं। उन्होंने लोगों को दयालु होने तथा मनुष्य के साथ-साथ जानवरों के जीवन का भी आदर करने की शिक्षा दी है। वे मानते थे कि हमारे कर्मों के परिणाम चाहे वह अच्छे हो या बुरे हमारे वर्तमान जीवन के साथ-साथ बाद के जीवन को भी प्रभावित करते हैं। बुद्ध ने अपनी शिक्षा सामान्य लोगों को प्राकृत भाषा में दी इसे सामान्य लोग भी उनके संदेश को समझ सके।बुद्ध ने कहा कि लोग किसी शिक्षा को केवल इसलिए नहीं स्वीकार करें कि यह उनका उपदेश है बल्कि वे उसे अपने विवेक से मापे। बहुत से वर्षों की कठोर तपस्या और साधना के बाद बौद्ध गया जो बिहार में है बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और तभी से वह सिद्धार्थ गौतम से भगवान बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुए।किसा गौतमी की कहानी:-यह बुद्ध
के विषय में एक प्रसिद्ध कहानी है एक समय की बात है किसा गौतमी नामक एक स्त्री का पुत्र मर गया। इस बात से इतनी दुखी हुई कि वह अपने बच्चे को गोद में लिए नगर की सड़कों पर घूम घूम कर लोगों से प्रार्थना करने लगी कि कोई उसके पुत्र को जीवित कर दे एक भला व्यक्ति उसे बुुद्ध के पास ले गया। बुद्ध ने कहा" मुझे एक मुट्ठी सरसों के बीज ला कर दो मैं तुम्हारे पुत्र को जीवित कर दूंगा"। गोद में बहुत प्रसन्न हुए और जैसे ही वह बीज लाने के लिए जाने लगी तभी बुद्ध ने उसे रोका और कहा "यह बीज एक ऐसे घर से मांग कर लाओ जहां किसी की मृत्यु ना हुई हो"। किसा गौतमी एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे गई लेकिन वह जहां भी गई उसने पाया कि हर घर में किसी ना किसी के पिता, माता, भाई, पति, पत्नी, बच्चे चाचा, चाची, दादा, दादी की मृत्यु हुई थी।
जिस समय बुद्ध उपदेश दे रहे थे उसी समय या उससे भी थोड़ा पहले दूसरे अन्य चिंतक भी कठिन प्रश्नों का उत्तर ढूंढने का प्रयास कर रहे थे।
उनमें से कुछ मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में जानना चाहते थे जबकि अन्य यज्ञों की उपयोगिता के बारे में जानने को उत्सुक थे। अधिकांश चिंतकों का यह मानना था कि इस विषय में कुछ तो ऐसा है जो कि स्थाई है और जो मृत्यु के बाद भी बचा रहता है उन्होंने इसका वर्णन आत्मा तथा ब्रह्म अथवा सार्वभौम आत्मा के रूप में किया है। वे मानते थे कि अंतत आत्मा तथा ब्रह्म एक ही है।
ऐसे कई विचारों का संकलन उपनिषदों में हुआ है ।वैदिक ग्रंथों का हिस्सा थे उपनिषद। उपनिषद का शाब्दिक अर्थ है गुरु के समीप बेठना। इन ग्रंथों में अध्यापकों और विद्यार्थियों के बीच बातचीत का संकलन किया गया है।प्रायः यह विचार सामान्य वार्तालाप के रूप में प्रस्तुत किए गए हैं।
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